Tuesday 28 September 2010

लंबाई बढते वक्‍त बच्‍चों के कपडे जूत्‍ते खरीदना बहुत बडी समस्‍या होती है !!

बोकारो के बारे में अबतक आपने पढा .... बोकारो में दोनो बच्‍चों के साथ परिवार के किसी अन्‍य सदस्‍य के न होने से मुझे पढाई के साथ ही साथ बच्‍चों के शारीरिक और चारित्रिक विकास पर भी मैने पूरा ध्‍यान देना पडा। बहुत बचपन में तो बच्‍चें की लंबाई तेज गति से बढती नहीं है , यदि बढती भी हो , तो अधिकांशत: हाफ शर्ट और हाफ पैण्‍ट में मालूम भी नहीं चलता। पर किशोरावस्‍था के दो चार वर्ष लंबाई में बहुत तेज गति से वृद्धि होती है , खासकर हमारे घर के सभी बच्‍चे 13 की उम्र तक अपनी पूरी लंबाई छह फीट पूरे कर लेते हैं , इस दौरान इनकी पीठ , बगल और जांघों में वो स्‍क्रैच पड जाता है , जो महिलाओं के शरीर में गर्भावस्‍था के दौरान पडता है। इसलिए 9 से 13 की उम्र के चार पोंच वर्ष जहां एक ओर पौष्टिक खाना खिलाने पर इनपर पूरा ध्‍यान देना आवश्‍यक होता हैं , वहीं फैशन के इस दौर में कपडे , जूते खरीदने में साइज को लेकर खासी मशक्‍कत होती है। कपडे जूत्‍ते तुरंत छोटे हो जाते , इसको ध्‍यान में रखते हुए बडे कपडे जूत्‍ते खरीदने की मजबूरी होती ।

कक्षा आठवीं तक ही पूरी लंबाई प्राप्‍त कर लेने से उसके बाद कपडों के छोटे होने को लेकर अधिक समस्‍या नहीं रह गयी थी। यह बात मुझे इसलिए याद है , क्‍यूंकि स्‍कूल की ओर से इस कक्षा में उनके नाप के अनुरूप जो नीले स्‍कोलर ब्‍लेजर मिले , वो दुबारा हमें नहीं बनवाने पडे थे। लंबाई पूरी होने के बाद फिर कमर की साइज बढने से समस्‍या आती रही। हां जब से हॉस्‍टल में रहने लगे हैं , बाहर के अस्‍वास्‍थ्‍यकारी और अरूचिकर खाने ने उनकी कमर भी कम कर दी है। अभी तक जिन पैण्‍टों के कमर छोटे हो गए थे , वो भी अब फिट हो रहे हैं। पर एक समय था , जब कपडे के कारण अच्‍छी मुसीबत हो जाया करती थी , खासकर एक प्रसंग तो हमेशा याद रखने लायक है।

बोकारो में दुर्गापूजा बहुत धूमधाम से मनायी जाती है , पूजा के कारण अधिकांश घरों में लोग नए कपडे खरीदते ही हैं , पर हमलोग कपडे का बाजार जरूरत के मुताबिक ही करते हैं । एक वर्ष दोनो भाइयों के सारे कपडे छोटे मिले , खासकर पैरों और हाथों की लंबाई बढने से फुल पैण्‍ट , फुल शर्ट और पार्टी के जूत्‍तों पर अधिक असर पडता है , क्‍यूंकि स्‍कूल के जूत्‍ते तो एक वर्ष में पहनने लायक नहीं होते। चार छह महीने के दौरान कहीं जाना हो , तो दिक्‍कत हो जाएगी , यह सोंचकर दोनो के तीन तीन सेट अच्‍छे कपडे बनवाए। दिसंबर में ही चाचाजी की लडकी का विवाह तय हुआ , वे फरवरी में विवाह कर सकते थे , पर घर के बच्‍चों की परीक्षा को देखते हुए 5 मार्च कर दिया ।

छह माह पहले पूजा में ही कपडे बनवाए थे , तैयारी की कोई आवश्‍यकता नहीं थी , इसलिए मैं बच्‍चों की परीक्षा की तैयारी में ही व्‍यस्‍त रही। 5 मार्च को मेरे बच्‍चों की अंतिम परीक्षा थी , परीक्षा देकर उन्‍हें 12 बजे तक स्‍कूल से लौटना था। मेरा मायका 30 किमी की दूरी पर है , मैने 1 बजे तक चलने का कार्यक्रम बनाया । दोनो को स्‍कूल भेजकर मैने जल्‍दी जल्‍दी सारी पैकिंग शुरू कर दी , एक एक सेट कपडे बच्‍चें के रास्‍ते के लिए भी रख लिए। स्‍कूल से बच्‍चे आए तो खा पीकर तैयार होने लगे। घर से कहीं निकलना हो , तो अंत अंत में कई तरह के काम होते हैं , मैं उसी में व्‍यस्‍त थी कि छोटे बेटे ने आकर दिखाया कि मैने उसके लिए जो पैंट निकालकर रखी थी , वह छोटा हो गया है। रास्‍ते की ही तो बात थी , मैने उसे बडे बेटे की वह पैण्‍ट दे दी , जो उसने एकाध दिन पहनकर हैंगर में टांग दिया था।

विवाह के घर में रिश्‍तेदारों की भीड , आजकल महिलाओं को काम तो कुछ रहता नहीं है , गप्‍पें मारते दोपहर से कैसे शाम हो गयी , पता भी न चला। बरात आने वाली थी , आठ या साढे आठ बजे हमलोग तैयार होने अपने पापा के घर आए , क्‍यूंकि हमारी अटैची वहीं थी। सब अपने अपने कपडे पहनने लगे , पर यह क्‍या ?? बडे ने तो पिछले वर्ष ही अपनी लंबाई पूरी कर ली थी , इसलिए इन छह महीनों में उसके कपडे छोटे नहीं हुए थे , पर छोटे बेटे की पैंट तो मेरे बढाकर खरीदे हुए दो तीन इंच अधिक का मेकअप करते हुए उसके पैरो से दो इंच ऊपर आ गयी थी यानि छह महीने के अंदर उसके कमर के नीचे का हिस्‍सा 5 इंच से अधिक बढ गया था। मेरे पास उसके और कपडे थे नहीं और मेरे घर में कोई उसका हमउम्र भी नहीं था । पुरानी पैंट, जो वह पहनकर गया था , उसमें रसगुल्‍ले के रस गिर चुके थे , बाजार भी बंद हो गया था , बडे ने पिछले वर्ष ही अपनी लंबाई पूरी कर ली थी , इसलिए उसके कपडे काफी लंबे थे , किसी तरह मोडकर उससे ही काम चलाना पडा।

8 comments:

माधव( Madhav) said...

सही बताया आपने

अन्तर सोहिल said...

13 साल की उम्र में ही 6 फीट, हैरत हुई!
वैसे स्क्रैच ज्यादातर मोटे लोगों के वजन घटाने पर देखे हैं जी।

चलो अच्छा हुआ बडे को दिक्कत नहीं आयी।
रोचक संस्मरण है, अच्छा लगा

प्रणाम स्वीकार करें

रवि धवन said...

विवाह के घर में रिश्‍तेदारों की भीड , आजकल महिलाओं को काम तो कुछ रहता नहीं है , गप्‍पें मारते दोपहर से कैसे शाम हो गयी , पता भी न चला।
रोचक संस्मरण।
बढिय़ा

tears n reflections said...

It is great to see out Yunger growing up...I allways think that what did I do at their age..
यहाँ दो बातें और भी गौरतलब हैं...एक तो लड़कियों में शारीरिक बदलाव जल्दी आ जाता है..और वो एक दिन में ही लम्बी सीढियां फांद जाती हैं...शालीनता..गंभीरता सहसा ही छूने लगता है और वहीं लड़कों के बैट बॉल और तीर कमान की लड़ाइयां कुछ वसंत और देखती हैं.... Amazing is the way we were brought up...I would perhaps like to post about d topic on my blog in greater detail sumtime..Lets C ...BTW My regards for the posts..and for sum inspirations..
Peace DV

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बढ़िया रहा यह आलेख!

Vinashaay sharma said...

बहुत मश्श्कत करनी पड़ी,अच्छा संसमरण ।

महेन्‍द्र वर्मा said...

रोचक प्रसंग...। हमें भी याद है, जब हम छोटे थे तो बड़े भाई के कपड़े बाद में हम छोटे भाई पहिनते थे।

rashmi ravija said...

ऐसी समस्याओं से आए दिन दो-चार होना पड़ता है..और नए -नए कीमती जूते , शर्ट का यूँ छोटा पड़ जाना बहुत अखरता है.